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Showing posts from July, 2018

धारा-377 पर सुप्रीम कोर्ट में अब तक क्या हुआ है?

देश की सर्वोच्च अदालत ने दो वयस्कों के बीच आपसी सहमति से बनाए गए यौन संबंध को आपराधिक कृत्य बताने वाली आईपीसी की धारा-377 की क़ानूनी वैधता जाँचने का ज़िम्मा उठाया है.आईपीसी की धारा-377 के मुताबिक़, अगर को ई व्यक्ति अ प्राकृतिक रूप से यौन संबंध बनाता है तो उसे उम्रक़ैद या जुर्माने के साथ दस साल तक की क़ैद हो सकती है. आईपीसी की ये धारा लगभग 150 साल पुरानी है और महारानी विक्टोरिया के दौर की नैतिकता का अवशेष मात्र है. सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला जल्द] समलैंगिकों को मूलत: एलजीबी टीक्यू (लेस्बियन, गे, बाय- सेक्शुअल्स, ट्रांसजेंडर्स और क्वीर) कहा जाता है. अक्तूबर, 2017 तक दुनिया के 25 देशों में समलैंगिकों के बीच यौन संबंध को क़ानूनी मान्यता मिल चुकी है. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई चीफ़ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंगटन नरीमन, जस्टिस एएम कनविल कर, जस्टिस डीवाय चंद्रचू ड़ और जस्टिस इंदू मल्होत्रा की संवैधानिक पीठ कर रही है. इससे पहले 9 जज़ों की बैंच निज ता के अधिकार को मूल अधि कार करार दे चुकी है और अब इन पाँच जजों की ये बेंच ये देखेगी कि क्या मौलिक अधिकार और जीवन जीने